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आज का व्रत/ त्यौहार सोमवार 30 मई 2022,

Writer's picture: CINE AAJKALCINE AAJKAL

सिहेक्ट मीडिया नई दिल्ली-

ज्योतिषाचार्या नमिता

सर्व ल्याणकारी संस्थान

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सोमवती अमावस्या और वट सावित्री व्रत

सोमवती अमावस्या

सोमवार से युक्त अमावस्या का शास्त्रों में विशेष माहात्म्य कहा गया है। स्कन्द पुराण के अनुसार सोमवार और अमावस्या का योग कभी-कभी होता है। इस दिन भगवान शिव के दर्शन करके पूजन आदि करने का विशेष महत्त्व होता है। विशेषकर सोमेश्वर महादेव की पूजार्चना करने से कोटि (करोड़ों) यज्ञों का फल प्राप्त होता है।

"अमासोमेन संयुक्ता कदाचिद् यदि लभ्यते।

तस्यां सोमेश्वरं दृष्ट्वा कोटियज्ञफलं लभेत्॥"

सोमवती अमावस्या का माहात्म्य

सोमवती अमावस्या के दिन तीर्थ स्थानों की यात्रा करना, पूजा पाठ, जप एवं ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र, दक्षिणा सहित दान करना विशेष पुण्यप्रद माना गया है।

  ये अमावस्या सोमवार को है अतः पुष्कर योग का निर्माण हो रहा  है। इस योग का फल सूर्यग्रहणों में किए हुए दान-पुण्य से सौ गुणा अधिक होता है।

सोमवार से युक्त अमावस्या अनन्त फल देने वाली होती है। इस दिन पितृगणों को दिया हुआ श्राद्ध अक्षय होता है। इस दिन पितरों को तर्पण करने पर उन्हे मुक्ति प्राप्त होती है।

"सोमवारेण संयुक्ता अमावस्या यदा भवेत्।

तत्रानन्तफलं श्राद्धं पितॄणां दत्तभक्षयम् ॥"

सोमवती अमावस्या का विशेष महत्व  -

पितृदोष शान्ति व पितृ तर्पण द्वारा पितृ को मुक्ति प्राप्त होती है।

सम्पदा सम्बन्धी परेशानियां हो तो जप तप द्वारा शान्ति प्राप्त होती है।

लड़के/लड़की के विवाह में विलम्ब हो रहा हो तो अनुकूल उपाय व दान दीजिए।

सन्तान एवं क्लिष्ट रोगों की शान्ति के लिए उपाय कर सकते हैं।

आध्यात्मिक क्षेत्र में आत्म शुद्धि के लिए इसका अत्यधिक महत्व है।

इन सभी के लिए इस दिन स्नान, दान व जप-पाठ आदि का विशेष माहात्म्य होता है।

पीपल की पूजा  

इस दिन व्रत धारण करके भगवान श्री विष्णु एवं शिवपूजन तथा चन्द्र तथा पीपल पूजन किया जाता है।

इस दिन ब्राह्मणों को दक्षिणा सहित भोजन, वस्त्र, फलों का दान करने का विशेष माहात्म्य होता है।

वट सावित्री व्रत/ वट अमावस

ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सौभाग्य की रक्षा के लिये वट वृक्ष की पूजा करती हैं। वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु तथा डालियों व पत्तियों में भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। इस व्रत में महिलाएं वट वृक्ष की पूजा में सती  सावित्री की कथा सुनती व वाचन करती हैं जिससे सौभाग्यवती महिलाओं की अखंड सौभाग्य की कामना पूरी होती है।

सौभाग्यवती महिलाए यथा-शक्ति उपवास करके अमावस्या के दिन बाँस की टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की प्रतिमा स्थापित करके वट वृक्ष के नीचे इनकी, यमराज तथा ब्रह्मा जी की पूजा करती हैं। वट वृक्ष की 108 बार प्रदक्षिणा करते हुए स्त्रियां सूत लपेटती हैं और पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। 

कथा :

राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री ने राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान का वरण किया। यह बात जब नारदजी को मालूम हुई तो वे राजा अश्वपति के पास आकर बोले कि आपकी कन्या ने वर खोजने में बड़ी भारी भूल की है। सत्यवान गुणवान तथा धर्मात्मा अवश्य है, परंतु वह अल्पायु है। एक वर्ष बाद ही उसकी मृत्यु हो जायेगी।

नारदजी की बात सुनकर राजा ने अपनी पुत्री को समझाया कि ऐसे अल्पायु व्यक्ति से विवाह करना उचित नहीं है, इसलिये वो कोई और वर चुन ले।

परंतु सावित्री ने कहा कि मैं एक हिन्दू नारी हूं, पति को एक ही बार चुनती हूं। अब चाहे जो हो, मैं सत्यवान को ही वर रूप में स्वीकार करुँगी। अतः विधि-विधानपूर्वक सावित्री और सत्यवान का विवाह कर दिया गया। विवाह उपरांत सावित्री अपने सास-ससुर और पति की सेवा में लगी रही।

पति के मरणकाल का समय पास आया तो धर्मपरायणा सावित्री ने त्रिरात्र व्रत का अनुष्ठान किया।

चौथा दिन आने पर जब सत्यवान ने लकड़ी, फूल और फल लाने के लिए जंगल की ओर प्रस्थान किया तब सावित्री भी पति के साथ जंगल में गयी।

लकड़ी काटते हुए सत्यवान के सिर में पीड़ा उत्पन्न हुई, तब वे पीड़ा से व्याकुल होकर सावित्री की गोद में सिर रख कर सो गए।

निश्चित समय में जब यमराज सत्यवान का सूक्ष्म शरीर दक्षिण दिशा की ओर लेकर चले तो सावित्री भी उनके साथ चली। उन्हें आता देख यमराज ने कहा कि हे पतिव्रता नारी! पृथ्वी तक ही पत्नी अपने पति का साथ देती है। अब तुम वापस लौट जाओ। उनकी इस बात पर सावित्री ने कहा कि जहां मेरे पति रहेंगे मुझे उनके साथ रहना है। यही मेरा पत्नी धर्म है।

सावित्री के मुख से यह उत्तर सुन कर यमराज बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने सावित्री से वर मांगने को कहा और बोले- मैं तुम्हें तीन वर देता हूं। सत्यवान के प्राणों को छोड़ कर, बोलो तुम कौन-कौन से तीन वर लोगी।

तब सावित्री ने सास-ससुर के लिए नेत्र ज्योति मांगी, ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मांगा एवं अपने पति सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनने का वर मांगा। सावित्री के यह तीनों वरदान सुनने के बाद यमराज ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा- तथास्तु! ऐसा ही होगा।

सावित्री पुन: उसी वट वृक्ष के पास लौट आई। जहां सत्यवान मृत पड़ा था। सत्यवान के मृत शरीर में फिर से जीवन का संचार हुआ।

इस प्रकार सावित्री ने अपने पतिव्रता व्रत के प्रभाव से न केवल अपने पति को पुन: जीवित करवाया बल्कि सास-ससुर को नेत्र ज्योति प्रदान करते हुए उसने ससुर को खोया राज्य फिर दिलवाया। 

तभी से वट सावित्री अमावस्या के दिन वट वृक्ष का पूजन-अर्चन करने का विधान है। यह व्रत करने से सौभाग्यवती महिलाओं की मनोकामना पूर्ण होती है और उनका सौभाग्य अखंड रहता है।



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